Thursday, 1 August 2013

हिज्र का समां


हिज्र का समां,  फिजाओं में है … 
आज सेहेर से ही अश्क निगाहों में है … 


तुझसे ज्यादा  'खुद' से बिछड़ने  का ग़म  है । 
अगर  मिल  पाते तो खुशियों को भी हमसे रश्क होती … 


यूँ  तो चलते रहना ज़िन्दगी की फितरत है लेकिन । 
दोस्त तुम  'साथ ' होते तो … 
 बात        कुछ और होती  !!!



hijr (separation) ka sama fizaon me hai..
aaj sahar ( morning) se ashq nigahon me hain..

tujhse jyada khud se bichadne ka gam hai..

mil pate toh khushiyon ko b humse rashk (envy) hoti..
...
yun toh chalte rehna zindagi ki fitrat hai..
par dost tum sath hote , toh baat -------
kuch aur hoti ..

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