Thursday 22 May 2014

इश्तेहार-ऐ -इश्क़

फज़ल उनसे कह दो ,खुद को मेरी आँखों में तलाशें … 
इक़रार -ऐ -इश्क़ के भी कहीं इश्तेहार छापे जाते हैं !!! 

:)

Wednesday 18 December 2013

ख़ुशी का मोल

हमारी ख़ुशी  का मोल भी नहीं समझ सके ,
वो मेरे ग़म से ताल्लुक ना  रखने वाले  !!

Wednesday 16 October 2013

कल आज और कल !!



कल आज और कल
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वो कल था ..
तुम भी कल हो ..
पर मैं ? ..
               मैं आज हूँ ..
और आज ही रहूंगी ..

उस से  आगे ..
पर तुमसे .. तुमसे  पीछे  !!!






Monday 23 September 2013

और फिर … " सुबह हो गई !!! "


रात के ख्वाब ने ,
पलकों का अंजुमन 
छोड़ा नहीं  … 
                                   और उन में तुमने , 
                                     मेरा आँचल , 
                                 छोड़ा  नहीं … 


तेरी टकटकी ने , 
एक बार भी ,
पलकें उठाने की मोहलत  न दी  ….

                       
                        और फिर  … "  सुबह हो गई  !!!  " 
 





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on a different note 


रात का नशा अभी आँख से  गया नहीं

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आँखों में कल रात का  बचा हुआ काजल .…
 बाक़ी रह गई नींद 
कुछ अधूरे ख्वाब 
बासी ख़याल 
अनबूझे सवाल 
कुछ मद्धम चलती हुई सांस 
                  --- सब शिकायतें करते हैं मुझ से, 
                        अधूरेपन की . . 
तब मैं कहती हूँ  उन सब से --  " उसे आने दो !!!  "

 


Tuesday 17 September 2013

रात भी , चाँद भी , हम - दोनों भी !!!

कुछ यूँ ही,  छुप  कर , 
उन  झरोखों से , तुम हमें देखा किए । 
तुम बिन हम कम जिए , 
तो तुम भी तो तड़पा किए …. 

तसव्वुर की चाहत , 
कुछ यूँ दबी रह गयी । 
कोई काफिया ग़ज़ल में ,
मुक़म्मल ना  हो पाया जैसे  …. 

रात भी , चाँद भी , 
हम - दोनों भी ,
चलते रहे , जलते रहे  …. 
अधूरे ही  !!!

हवाओं के ये हसीन , 
सर्द झोंके … 
जाएं यादों के उस जहाँ में , 
मुझे ले  के  … 

जिस मोड़ पे ,
 अधूरी सी , एक कहानी है  …. 
वो जो इनकार की हक़ीक़त  , 
तुम्हें बतानी है  !!!! 

Monday 19 August 2013

" बातें "

पास आए तो अब ये मालूम हुआ    
दोस्त  -- दूर जब हम थे , 
तो  'बातें ' क्या खूब होती थीं …. 
 

Thursday 1 August 2013

हिज्र का समां


हिज्र का समां,  फिजाओं में है … 
आज सेहेर से ही अश्क निगाहों में है … 


तुझसे ज्यादा  'खुद' से बिछड़ने  का ग़म  है । 
अगर  मिल  पाते तो खुशियों को भी हमसे रश्क होती … 


यूँ  तो चलते रहना ज़िन्दगी की फितरत है लेकिन । 
दोस्त तुम  'साथ ' होते तो … 
 बात        कुछ और होती  !!!



hijr (separation) ka sama fizaon me hai..
aaj sahar ( morning) se ashq nigahon me hain..

tujhse jyada khud se bichadne ka gam hai..

mil pate toh khushiyon ko b humse rashk (envy) hoti..
...
yun toh chalte rehna zindagi ki fitrat hai..
par dost tum sath hote , toh baat -------
kuch aur hoti ..